मोक्षदा एकादशी हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र एकादशी मानी जाती है। यह मार्गशीर्ष मास (अगहन) के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन व्रत और पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत करने और भगवान विष्णु की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
धार्मिक महत्व:
- गीता जयंती: मोक्षदा एकादशी का दिन श्रीमद्भगवद्गीता के प्राकट्य दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इसी दिन भगवद्गीता का उपदेश दिया था।
- मोक्ष की प्राप्ति: यह व्रत पितरों की आत्मा की शांति के लिए भी किया जाता है। जो व्यक्ति इस दिन श्रद्धा और नियमपूर्वक व्रत रखता है, उसे विष्णु लोक में स्थान मिलता है।
- भगवान विष्णु की पूजा: इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की विशेष आराधना की जाती है।
व्रत विधि:
- प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के समक्ष दीप प्रज्वलित करें।
- विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें या "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें।
- दिनभर व्रत रखें और शाम को कथा सुनें या पढ़ें।
- व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है।
लाभ:
- मोक्ष की प्राप्ति।
- पापों से मुक्ति।
- पितरों की आत्मा को शांति।
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक नगर हुआ करता था जिसका नाम चंपकपुरी था। इस नगर में वैखानस नामक राजा का शासन था। राजा धर्मनिष्ठ और प्रजा का ध्यान रखने वाला था। एक रात राजा ने स्वप्न में देखा कि उसके पिता नरक में कष्ट भोग रहे हैं। इससे राजा बहुत व्याकुल हुआ और उसने अपने पिता को मुक्ति दिलाने का उपाय जानने के लिए अपने गुरुओं और मुनियों से सलाह ली।
राजा के गुरुओं ने बताया कि मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को "मोक्षदा एकादशी" कहा जाता है। इस दिन व्रत और भगवान विष्णु की आराधना से पितरों को मोक्ष मिलता है।
राजा ने पूरे विधि-विधान से इस व्रत को रखा और भगवान विष्णु की पूजा की। इसके प्रभाव से राजा के पिता को नरक से मुक्ति मिल गई और वे विष्णु लोक को प्राप्त हुए। इस प्रकार राजा ने अपने पिता की आत्मा को शांति दिलाई।
शिक्षा:
यह कथा हमें यह सिखाती है कि मोक्षदा एकादशी का व्रत न केवल हमारे पापों का नाश करता है, बल्कि हमारे पितरों को भी मोक्ष प्रदान कर सकता है।
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