कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी, देवोत्थान तथा प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है । आज से ही तुलसी विवाह आरम्भ किया जाता है और देवी लक्ष्मी एवं भगवान श्री विष्णु की पूजा की जाती है । देवउठनी एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को स्वर्ग में स्थान मिलता है और व्यक्ति के सारे पाप भी नष्ट हो जाते हैं ।।
आज भगवान श्रीमन्नारायण श्रीविष्णु की विधि-विधान से पूजा पाठ करनी चाहिए । पूजा संपन्न होने के बाद एकादशी व्रत कथा पढ़नी चाहिए । आइए जानते हैं देवउठनी एकादशी की पौराणिक व्रत कथा ।।
देवउठनी एकादशी व्रत कथा ।। Devuthani Ekadashi Vrat Katha.
मित्रों, कथा के अनुसार एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे । प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था । तभी एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आया और खुद को उनके राज्य में नौकरी पर रखने के लिए बोला । उसके बाद राजा ने उस व्यक्ति के सामने एक शर्त रखी ।।
राजा ने कहा- प्रतिदिन तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, परन्तु एकादशी के दिन तुम्हें अन्न नहीं दिया जाएगा । उस व्यक्ति ने उस समय राजा की बात मान ली । परन्तु एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा और बोला महाराज इससे मेरा पेट नहीं भरेगा । मैं भूखा मर जाऊंगा, इसलिये कृपया मुझे अन्न दे दें ।।
राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई उसके बाद भी वह नहीं माना । इसके बाद राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दे दिए । वह हर दिन की तरह नदी पर गया वहां स्नान कर भोजन पकाया और भगवान का आवाहन किया । भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए और प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे । भोजनादि करके भगवान वहां से अंतर्धान हो गए और व्यक्ति अपने काम पर निकल गया ।।
पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए । उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया था । राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं । इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता । यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ । वह बोला- मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं ।।
मैं तो इतना व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए । राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लीजिये । राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया । उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान न आए । अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा ।।
लेकिन भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा । प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे । खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम को ले गए ।।
यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो । इससे राजा को ज्ञान मिला और वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ । इसलिए सच्चे मन से एकादशी का व्रत करने से व्रती को स्वर्ग की प्राप्ति अवश्य ही होती है ।।
देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु का विशेष सामग्री से पूजन ।। Dev Uthani Ekadashi Par Vishesh Poojan.
देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु का यथाविधान पूजन करें और ये विशेष रूप से यह फुल और फल अर्पित करें । इससे वैकुण्ठ में अर्थात् विष्णु लोक में सर्वश्रेष्ठ स्थान मिलती है ।।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का बहुत महत्व होता है । आज भगवान विष्णु नींद से जगते हैं, इसलिए इसे देवउठनी एकादशी कहते हैं । कार्तिक मास की एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता हैं । एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है वहीं देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह भी किया जाता है ।।
आज से वैदिक सनातन धर्म में मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है । वहीं आज कुछ लोग भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय भी करते हैं । आज आप भी अपनी मनोकामनाओं के अनुसार भगवान को प्रसन्न करने के लिये इन उपायों को सकते हैं । एकादशी के दिन अलग-अलग प्रकार के पुष्पों से भगवान विष्णु को प्रशन्न करना चाहिये । इससे व्यक्ति के जन्म-जन्मांतर के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है ।।
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को बेलपत्र अर्पित करने से मनुष्य को मुक्ति मिलती है, साथ ही उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं । इस एकादशी पर तुलसी विवाह भी किया जाता है और भगवान विष्णु के भोग में तुलसी जरुरी होती है । वहीं इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी अर्पित करने से मनुष्य के 10,000 जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं ।।
देवउठनी एकादशी के दिन विष्णु जी को कदम्ब के फूल अर्पित करें, इससे व्यक्ति को कभी यमराज नहीं दिखते । प्रबोधिनी एकादशी के दिन जो भक्त श्री हरि को गुलाब के फूल अर्पित करते हैं, उन्हें सहज ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है । देवउठनी एकादशी को जो मनुष्य सफेद या लाल कनेर के फूलों से भगवान का पूजन करते हैं, उन पर भगवान अत्यंत प्रसन्न होते हैं ।।
जो मनुष्य भगवान विष्णु पर आम की मंजरी चढ़ाते हैं, वे करोड़ों गायों के दान का फल प्राप्त करते हैं । प्रबोधिनी एकादशी के दिन जो व्यक्ति दुर्वांकुरों से भगवान की पूजा करते हैं, उन्हें 100 गुना ज्यादा पूण्य प्राप्त होता हैं । देवउठनी एकादशी के दिन जो भी व्यक्ति भगवान विष्णु को चंपा के पुष्पों से पूजन करते हैं, उनकी मुक्ति निश्चित ही हो जाती है तथा उन्हें संसार के दु:ष्कर्मों का फल नहीं भोगना पड़ता है ।।
पीले रक्त वर्ण के कमल पुष्पों से भगवान का पूजन करने वाले को विष्णु लोक में स्थान मिलता है । भगवान श्रीविष्णु को केतकी के फूल अर्पित करने से व्यक्ति के करोड़ों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं । जो व्यक्ति बकुल और अशोक के पुष्पों को भगवान विष्णु को अर्पित करते हैं, उन्हें अपने जीवन में कभी किसी प्रकार का शोक का सामना नहीं करना पड़ता हैं ।।
जो व्यक्ति कार्तिक मास में तुलसी का रोपण करता है और रोपी गई तुलसी जितनी जड़ों का विस्तार करती है उतने ही हजार युगपर्यंत तुलसी रोपण करने वाले का वंश विस्तार होता है । देवउठनी एकादशी पर तुलसी दर्शन का अधिक महत्व माना गया है । तुलसी के पौधे को स्पर्श करने, कथा कहने, स्तुति करने, तुलसी रोपण और प्रतिदिन पूजन-सेवा आदि करने से हजार करोड़ युगपर्यंत विष्णुलोक में निवास करते हैं ।।
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