भगवान चित्रगुप्त, संसार के सभी प्राणियों का, पाप पुण्य का लेखा-जोखा रखने के लिए यमलोक में विराजमान हैं। महाराज यमराज मृत्यु के उपरांत, उनके के कर्मों के अनुसार दण्ड निर्धारित करते हैं। उसके बाद ही, स्वर्ग-नरक का दरवाजा खोला जाता है और यह दंड महाराज चित्रगुप्त के लेखा-जोखा के आधार पर निर्धारित किया जाता है।
भगवान चित्रगुप्त प्रमुख हिन्दू देवताओं में एक हैं। वेदों और पुराणों के अनुसार, धर्मराज श्री चित्रगुप्त जी महाराज अपने दरबार में जीवों के पाप- पुण्य का लेखा -जोखा करके न्याय करते हैं। आधुनिक विज्ञान ने यह सिद्ध किया है कि हमारे मन में जो भी विचार आते हैं वे सभी चित्रों के रूप में होते हैं। भगवान चित्रगुप्त इन सभी विचारों के चित्रों को गुप्त रूप से संचित करके रखते हैं और अंत समय में ये सभी चित्र दृष्टिपटल पर रखे जाते हैं और इन्हीं के आधार पर जीवों के पारलोक व पुनर्जन्म का निर्णय सृष्टि के “प्रथम न्यायाधीश” भगवान चित्रगुप्त ही करते हैं।
विज्ञान ने यह भी यह सिद्ध किया है कि मृत्यु के पश्चात जीव का मस्तिष्क कुछ समय कार्य करता है और इस दौरान जीवन में घटित प्रत्येक घटना के चित्र मस्तिष्क में चलते रहते हैं । इसे हजारों वर्ष पूर्व हमारे वेदों में लिखा गया है।
शनि देव जिस प्रकार सृष्टि के प्रथम दंडाधिकारी हैं, उसी प्रकार भगवान चित्रगुप्त सृष्टि के प्रथम न्यायाधीश है। मृत्यु के पश्चात, पृथ्वी पर उनके द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर उनके लिए स्वर्ग या नरक का निर्णय लेने का अधिकार भगवान चित्रगुप्त के पास है, अर्थात कर्मों के अनुसार, किसे स्वर्ग मिलेगा और किसे नरक। भगवान चित्रगुप्त जी भारतवर्ष [आर्यावर्त] के कायस्थ वंशज के जनक देवता हैं। कायस्थ भगवान चित्रगुप्त के वंशज है।
भगवान कायस्थ धर्मराज श्री चित्रगुप्त जी महाराज द्वारा पाप-पुण्य के निर्णय के अनुसार ही, न्यायकर्ता, महाराज यमराज भी निर्णय लेते हैं।
चित्रगुप्त महाराज का मंत्र है-
“ॐ नमो भगवते चित्रगुप्ताय नमः अस्त्र लेखनी मसि एवं तलवार असि जीवनसाथी सूर्यपुत्री दक्षिणा नंदिनी एरावती शोभावती।”
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा की कई संताने हुई थी, उनके मन से पैदा होने वालों में ऋषि वशिष्ठ, नारद और अत्री थे और उनके शरीर से पैदा होने वाले पुत्र में, धर्म, भ्रम, वासना, मृत्यु और भरत सर्व विदित है, लेकिन भगवान चित्रगुप्त के जन्म अवतरण की कहानी भगवान ब्रह्मा जी के अन्य बच्चों से कुछ भिन्न है।
भगवान चित्रगुप्त का जन्म भगवान ब्रह्मा जी के काया (शरीर) से हुआ है, इसलिये भगवान चित्रगुप्त को कायस्थ जाति की संज्ञा से नामित किया गया है। भगवान चित्रगुप्त के 12 पुत्र हुए, भगवान चित्रगुप्त की दो पत्नी थी। पहली पत्नी थी देवी शोभावती, जिससे 8 पुत्र (1) चारु (माथुर), (2) चित्र चारु (कर्ण), (3) मतिभान (सक्सेना), (4) सुचारू (गौड़), (5) चारुसत (अस्थाना), (6) हिमवान (अम्बष्ठ), (7) चित्र (भटनागर), (8) अतीन्द्रिय (बाल्मीक) और दूसरी पत्नी थी देवी नंदिनी, जिससे 4 पुत्र (1) भानु (श्रीवास्तव), (2) विभानु (सूरजध्वज), (3) विश्वभानु (निगम), (4) वीर्यवान (कुलश्रेष्ठ) हुए और नाम से नामित किया गया। इस प्रकार भगवान चित्रगुप्त के कुल 12 पुत्र है।
भगवान चित्रगुप्त के इन 12 पुत्रों का विवाह नागराज वासुकी की 12 कन्याओं से हुआ था जिससे कायस्थों की ननिहाल नागवंशी है। माता नंदिनी के 4 पुत्र कश्मीर में जाकर बसे तथा शोभावती के 8 पुत्र गौड़ देश के आसपास बिहार, ओडिशा तथा बंगाल में जा बसे। बंगाल उस समय गौड़ देश कहलाता था।
भारत के कश्मीर में दुर्लभ बर्धन कायस्थ वंश, काबुल और पंजाब में जयपाल कायस्थ वंश, गुजरात में वल्लभी कायस्थ राजवंश, दक्षिण में चालुक्य कायस्थ राजवंश, उत्तर भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सतवाहन और परिहार कायस्थ राजवंश सत्ता में थे।
भाई दूज के दिन भगवान चित्रगुप्त महाराज की जयंती मनाया जाता है। इस दिन कलम–दवात की पूजा (कलम, दवात, स्याही और तलवार की पूजा) की जाती है।
भाई दूज के दिन कायस्थ लोग कलम–दवात की पूजा (कलम, दवात, स्याही और तलवार की पूजा) करने के बाद 24 घंटे के लिए कलम का उपयोग नहीं करते हैं, क्योंकि इसके पीछे भी कहानी है कि जब भगवान राम के राजतिलक में भगवान चित्रगुप्त का निमंत्रण छुट गया (निमंत्रण नहीं दिया गया) था, जिसके कारण भगवान चित्रगुप्त महाराज ने नाराज होकर कलम को रख दी थी। उस समय परेवा काल शुरू हो चुका था। इसलिए परेवा के दिन कायस्थ समाज कलम का प्रयोग नहीं करते हैं यानि किसी भी तरह का का हिसाब–किताब नही करते है।
जब भगवान राम, दशानन रावण को मार कर जब अयोध्या लौट रहे थे, तब उनके खड़ाऊँ को राज सिंहासन पर रखकर राज्य चला रहे राजा भरत ने गुरु वशिष्ठ को भगवान राम के राजतिलक के लिए सभी देवी देवताओं को संदेश भेजने की व्यवस्था करने को कहा था। गुरु वशिष्ठ ने ये काम अपने शिष्यों को सौंप कर राजतिलक की तैयारी शुरू कर दी थी। राजतिलक में सभी देवी देवता आ गए तब भगवान राम ने अपने अनुज भरत से पूछा भगवान चित्रगुप्त दिखाई नहीं दे रहे है, तब पता चला की गुरु वशिष्ठ के शिष्यों ने भगवान चित्रगुप्त को निमंत्रण पहुंचाया ही नहीं था, जिसके कारण भगवान चित्रगुप्त नहीं आये। इधर भगवान चित्रगुप्त सब जान चुके थे और इसे प्रभु राम की महिमा समझ रहे थे । फलस्वरूप उन्होंने गुरु वशिष्ठ की इस भूल को अक्षम्य मानते हुए यमलोक में सभी प्राणियों का लेखा-जोखा लिखने वाली कलम को उठा कर किनारे रख दिया था।
सभी देवी देवता जैसे ही राजतिलक से लौटे, तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुके हुए थे, जीवों का लेखा-जोखा ना लिखे जाने के चलते ये तय कर पाना मुश्किल हो रहा था कि किसको कहाँ (स्वर्ग-नरक) भेजे I तब गुरु वशिष्ठ की इस गलती को समझते हुए भगवान राम ने अयोध्या में भगवान विष्णु द्वारा स्थापित भगवान चित्रगुप्त के मंदिर (श्री अयोध्या महात्म्य में भी इसे श्री धर्म हरि मंदिर कहा गया है और धार्मिक मान्यता है कि अयोध्या आने वाले सभी तीर्थयात्रियों को अनिवार्यत: श्री धर्म-हरि जी के दर्शन करना चाहिये, अन्यथा उसे इस तीर्थ यात्रा का पुण्य फल प्राप्त नहीं होगा) में गुरु वशिष्ठ के साथ जाकर भगवान चित्रगुप्त की स्तुति की और गुरु वशिष्ठ की गलती के लिए क्षमायाचना की, जिसके बाद भगवान राम के आग्रह मानकर भगवान चित्रगुप्त ने लगभग चार पहर (24 घंटे बाद ) पुन: कलम-दवात की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और जीवों का लेखा-जोखा लिखने का कार्य आरम्भ किया I तभी से कायस्थ ब्राह्मणों के लिए भी पूजनीय हुए और इस घटना के पश्चात मिले वरदान के फलस्वरूप सबसे दान लेने वाले ब्राह्मणों से दान लेने का हक सिर्फ कायस्थों को ही है।
Sundarta very informative content. Your content helped me a lot. Sundarta Post
ReplyDeleteSundarta very informative content. Your content helped me a lot. Sundarta Post
ReplyDelete