श्री मृत्युंजय स्तोत्र महर्षि मार्कण्डेय द्वारा भगवान (शिव) की स्तुति में रचा गया है। मार्कण्डेय अल्पायु थे, दीर्घ आयु हेतु उन्होंने भगवान शिव की आराधना की। मुत्यु के समय भगवान शिव के आशीर्वाद से काल को वापस लौटना पड़ा एवं शिव ने मार्कण्डेय को दीर्घायु होने का वरदान दिया।
स्तोत्र
ॐ अस्य श्री सदाशिवस्तोत्र मन्त्रस्य मार्कंडेय ऋषिः अनुष्टुप्छन्दः श्री साम्ब सदाशिवो देवता गौरी शक्ति: मम सर्वारिष्ट निवृत्ति पूर्वक शरीरारोग्य सिद्धयर्थे मृत्युंज्यप्रीत्यर्थे च पाठे विनियोग:॥
ॐ रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठमुमापतिम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति॥
नीलकण्ठं विरुपाक्षं निर्मलं निर्भयं प्रभुम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति॥
कालकण्ठं कालमूर्तिं कालज्ञं कालनाशनम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति॥
वामदेवं महादेवं शंकरं शूलपाणिनम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति॥
देव देवं जगन्नाथं देवेशं वृषभध्वजम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति॥
गंगाधरं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति॥
भस्म धूलित सर्वांगं नागाभरण भूषितम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति॥
आनन्दं परमानन्दं कैवल्य पद दायकम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो े मृत्यु: करिष्यति॥
स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टि स्थित्यंत कारणम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति॥
प्रलय स्थिति कर्तारमादि कर्तारमीश्वरम्।
नमामि शिरसा देवं किन्नो मृत्यु: करिष्यति॥
मार्कण्डेय कृतंस्तोत्रं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
तस्य मृत्युभयं नास्ति सत्यं सत्यं वदाम्यहम्॥
सत्यं सत्यं पुन: सत्यं सत्यमेतदि होच्यते।
प्रथमं तु महादेवं द्वितीयं तु महेश्वरम॥
तृतीयं शंकरं देवं चतुर्थं वृषभध्वजम्।
पंचमं शूलपाणिंच षष्ठं कामाग्निनाशनम्॥
सप्तमं देवदेवेशं श्रीकण्ठं च तथाष्टमम्।
नवममीश्वरं चैव दशमं पार्वतीश्वरम्॥
रुद्रं एकादशं चैव द्वादशं शिवमेव च।
एतद् द्वादश नामानि त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नरः॥
ब्रह्मघ्नश्च कृतघ्नश्च भ्रूणहा गुरुतल्पग:।
सुरापानं कृतघन्श्च आततायी च मुच्यते॥
बालस्य घातकश्चैव स्तौति च वृषभ ध्वजम्।
मुच्यते सर्व पापेभ्यो शिवलोकं च गच्छति।
इति श्री मार्कण्डेयकृतं मृत्युंज्यस्तोत्रं सम्पूर्णम्
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