पुस्तक : जब नील का दाग मिटा -‘चम्पारण 1917’
प्रकाशक : सार्थक, राजकमल प्रकाशन
लेखक : पुष्यमित्र
भाषा : हिंदी
बाईंडिंग : पेपरबैक
मूल्य : 150/-
वर्ष : २०१८
खंड : कथेतर/ इतिहास
पजेस : 152
EAN/ISBN-13 for PB 978-81-267-3051-3
जब नील का दाग मिटा -‘चम्पारण 1917’
सन् 1917 का चम्पारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में महात्मा गांधी के अवतरण की अनन्य प्रस्तावना है, जिसका दिलचस्प वृत्तान्त यह पुस्तक प्रस्तुत करती है।
गांधी नीलहे अंग्रेजों के अकल्पनीय अत्याचारों से पीडि़त चम्पारण के किसानों का दु:ख-दर्द सुनकर उनकी मदद करने के इरादे से वहाँ गए थे। वहाँ उन्होंने जो कुछ देखा, महसूस किया वह शोषण और पराधीनता की पराकाष्ठा थी, जबकि इसके प्रतिकार में उन्होंने जो कदम उठाया वह अधिकार प्राप्ति के लिए किए जानेवाले पारम्परिक संघर्ष से आगे बढक़र 'सत्याग्रह’ के रूप में सामने आया। अहिंसा उसकी बुनियाद थी।
सत्य और अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह का प्रयोग गांधी हालाँकि दक्षिण अफ्रीका में ही कर चुके थे, लेकिन भारत में इसका पहला प्रयोग उन्होंने चम्पारण में ही किया। यह सफल भी रहा। चम्पारण के किसानों को नील की जबरिया खेती से मुक्ति मिल गयी, लेकिन यह कोई आसान लड़ाई नहीं थी।
नीलहों के अत्याचार से किसानों की मुक्ति के साथ-साथ स्वराज प्राप्ति की दिशा में एक नए प्रस्थान की शुरुआत भी गांधी ने यहीं से की। यह पुस्तक गांधी के चम्पारण आगमन के पहले की उन परिस्थितियों का बारीक ब्यौरा भी देती है, जिनके कारण वहाँ के किसानों को अन्तत: नीलहे अंग्रेजों का रैयत बनना पड़ा।
इसमें हमें अनेक ऐसे लोगों के चेहरे दिखलाई पड़ते हैं, जिनका शायद ही कोई जिक्र करता है, लेकिन जो सम्पूर्ण अर्थों में स्वतंत्रता सेनानी थे।
इसका एक रोचक पक्ष उन किम्वदन्तियों और दावों का तथ्यपरक विश्लेषण है, जो चम्पारण सत्याग्रह के विभिन्न सेनानियों की भूमिका पर गुजरते वक्त के साथ जमी धूल के कारण पैदा हुए हैं।
सीधी-सादी भाषा में लिखी गई इस पुस्तक में किस्सागोई की सी सहजता से बातें रखी गई हैं, लेकिन लेखक ने हर जगह तथ्यपरकता का खयाल रखा है।
लेखक पुष्यमित्र के बारे में -
पुष्यमित्र एक घुमन्तू पत्रकार लेखक हैं। आपका जन्म मुंगेर में हुआ। वैसे पैतृक गाँव बिहार के पूर्णिया जिले का धमदाहा गाँव है। आपने पहले नवोदय विद्यालय और फिर भोपाल के पत्रकारिता विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। आपकी पत्रकारिता-यात्रा भोपाल, दिल्ली, हैदराबाद, चंडीगढ़ जैसे शहरों से होती हुई बिहार-झारखंड में जारी है।
फिलहाल आप दैनिक अखबार 'प्रभात खबर’ (पटना) से सम्बद्ध हैं। इसी साल आपका एक उपन्यास 'रेडियो कोसी’ नाम से प्रकाशित हो चुका है। दो ई-बुक भी प्रकाशित हैं—उपन्यास 'सुन्नैर नैका’ और रिपोर्ताज 'फरकिया’।
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