जानें दुर्गा के नौ शक्ति रूपों को..
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हिंदू धर्म पर आस्था रखने वालों के अनुसार मां भगवती संपूर्ण संसार के लिए शक्ति स्त्रोत हैं, जिनकी इच्छा से पृथ्वी पर सभी कार्य संपन्न होते हैं। मां भगवती की इसी महिमा को समर्पित नवरात्र, यानि नौ दिनों का ऐसा पर्व जब उनके भक्त पूरी श्रद्धा के साथ उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं, मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह पर्व एक वर्ष में दो बार मनाया जाता है, एक चैत्र माह में और दूसरा आश्विन माह में। आश्विन मास के नवरात्र को शारदीय नवरात्र भी कहते हैं। नवरात्र पर्व केदिनों में देवी मां के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। आइए क्रमानुसार मां के हर रूप को जानें:
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नवरात्र पर्व के प्रथम दिन शैलपुत्री देवी की आराधना की जाती है। पुराणों के अनुसार हिमालय के तप से प्रसन्न होकर आदिशक्ति उनके घर पुत्री रूप में अवतरित हुई, जिनके जन्म के साथ नवरात्र का शुभारंभ होता है।
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भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए पार्वती की कठिन तपस्या से तीनों लोक उनके समक्ष नतमस्तक हो गए थे। देवी का यह रूप तपस्या के तेज से ज्योतिर्मय है। इनके दाहिने हाथ में मंत्र जपने की माला तथा बाएं में कमंडल है।
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यह देवी का उग्र रूप है। इनके घंटे की ध्वनि सुनकर विनाशकारी शक्तियां तत्काल पलायन कर जाती हैं। व्याघ्र पर विराजमान और अनेक अस्त्रों से सुसज्जित मां चंद्रघंटा भक्त की रक्षा हेतु सदैव तत्पर रहती हैं।
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नवरात्र पर्व के चौथे दिन भगवती के इस अति विशिष्ट स्वरूप की आराधना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इनकी हंसी से ही ब्रह्माण्ड उत्पन्न हुआ था। अष्टभुजी माता कूष्मांडा के हाथों में कमंडल,धनुष-बाण,कमल,अमृत-कलश,चक्र तथा गदा है। इनके आठवें हाथ में मनोवांछित फल देने वाली जपमाला है।
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नवरात्र पर्व की पंचमी तिथि को भगवती के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता की पूजा की जाती है। देवी के एक पुत्र कुमार कार्तिकेय (स्कंद) हैं, जिन्हें देवासुर-संग्राम में देवताओं का सेनापति बनाया गया था। इस रूप में देवी अपने पुत्र स्कंद को गोद में लिए बैठी होती हैं। स्कंदमाता अपने भक्तों को शौर्य प्रदान करती हैं।
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कात्यायन ऋषि की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवती उनके यहां पुत्री के रूप में प्रकट हुईं और कात्यायनी कहलाईं। कात्यायनी का अवतरण महिषासुर वध के लिए हुआ था। भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने देवी कात्यायनी की आराधना की थी। जिन लड़कियों की शादी न हो रही हो वे कात्यायनी माता की उपासना करें।
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नवरात्र पर्व के सातवें दिन यानि सप्तमी को कालरात्रि की आराधना का विधान है। यह भगवती का विकराल रूप है। गर्दभ पर आरूढ़ यह देवी अपने हाथों में लोहे का कांटा तथा खड्ग भी लिए हुए हैं। इनके भयानक स्वरूप को देखकर विध्वंसक शक्तियां पलायन कर जाती हैं।
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नवरात्र पर्व की अष्टमी को महागौरी की आराधना का विधान है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए भवानी ने अति कठोर तपस्या की जिसके फलस्वरूप उनका रंग काला पड़ गया था। तब शिव जी ने गंगाजल द्वारा इनका अभिषेक किया और वे गौरवर्ण की हो गईं, इसीलिए इन्हें गौरी कहा जाता है।
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नवरात्र पर्व के अंतिम दिन नवमी को भगवती के सिद्धिदात्री स्वरूप का पूजन किया जाता है। इनकी अनुकंपा से ही समस्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं। अन्य देवी-देवता भी मनोवांछित सिद्धियों की प्राप्ति की कामना से इनकी आराधना करते हैं। कुछ धर्मग्रंथों में इनका वाहन सिंह बताया गया है,परंतु माता अपने लोक प्रचलित रूप में कमल पर बैठी दिखाई देती हैं। सिद् धिदात्री की पूजा से नवरात्र में नवदुर्गा पूजा का अनुष्ठान पूर्ण हो जाता है।
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