हर आहटों पर हमने मंजील को रुकते देखा है
मंजील की चाह मे मुसाफिर को झुकते देखा है
इतना समझ ले कि बागवां नही है जिन्दगी
हमने गुलो की शाख पे काँटो को आते देखा है
इस जिन्दगी मे आनी थी जो तमन्ना की बरात
वो तमन्नाओं का जंगल हमने उजड़्ते देखा है
लोग कहते है कि जिन्दगी प्यार का सागर होता है
गमों का समन्दर मगर हमने उफनते देखा है